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जय चक्रवर्ती
- कविता / ग़ज़ल
तुम दरबारों के गीत लिखो
मैं जन की पीड़ा गाऊँगा.
लड़ते-लड़ते तूफानों से
मेरे तो युग के युग बीते
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संध्या सिंह
- कविता / ग़ज़ल
जो हमेशा बज़्म का हिस्सा रहे हैं
ये समझ लो उम्र भर तन्हा रहे हैं
तुम समझना चाहते हो रुख़ हवा का
हम हवा को रास्ता समझा रहे हैं
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राम कुमार कृषक
- कविता / ग़ज़ल
सार्थक संध्या नहीं थी आज की ,
बेपरों चर्चा रही परवाज़ की ।
थे वही क्यों थे मगर बातें हुईं ,
कुछ अदीबों के अलग अंदाज़ की ।
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विजया गुप्ता
- कविता / ग़ज़ल
कुछ अधूरा सृजन ,बिखरे सपने
कुछ धुंधली यादेँ, बिछड़े अपने
कुछ अश्रु बूंद ठहरी पलकों पर
मन में उभरते कुछ चित्र अधबने
इनको ज़रा उकेरूं तो गीत लिखूं।
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विमल चन्द्राकर
- कविता / ग़ज़ल
चालीसवें बसंत पर हूँ
कल रात की ढ़लान के बाद
अभी भी मैं शायद खिला हूँ...
पर जर्जरता क्षीणता तो नियति है।
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किशन स्वरूप
- कविता / ग़ज़ल
तुम माँ हो, दुहिता हो,भगिनी, मित्र तुम्हीं ,
जीवन को जीवन दे मात्र चरित्र तुम्हीं ।
तुम सागर हो प्यार -प्रीति का ममता का,
सहिष्णुता सद्भाव ,सौम्यता ,समता का ।
- रामस्नेही लाल शर्मा यायावर
- कविता / ग़ज़ल
आये फिर लहरों में तिरने के दिन
घोल रही मधुगन्धा मदमाते घोल
इच्छाएँ घूम रहीं बाँध-बाँध टोल
पल्लव से अंतर के चिरने के दिन
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प्रो सरोज मिश्र
- कविता / ग़ज़ल
जिस रोज तुम्हारी गागर से सतरंगी रंग छलक जाए .
उस रोज समझना धरती पर फिर फागुन आने वाला है
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ऋषिराज राही
- कविता / ग़ज़ल
अनसुनी सी रही रात की रागिनी
अनमने से सपन कसमसाते रहे।
हम सजाते रहे छांव के गुलमोहर
वो खड़े धूप में तन जलाते रहे।
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डॉ. जगदीश व्योम
- कविता / ग़ज़ल
आमों पर खूब बौर आए
भँवरों की टोली मँडराए
बगिया की अमराई में फिर
कोकिल पंचम स्वर में गाए