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दीपक गिरकर
- समीक्षा
पुस्तक : इस समय तक (कविता संग्रह), 2019
लेखक : धर्मपाल महेन्द्र जैन
प्रकाशक : शिवना प्रकाशन
“इस समय तक” चर्चित वरिष्ठ कवि-साहित्यकार श्री धर्मपाल महेन्द्र जैन का प्रथम कविता संग्रह हैं. इसके पूर्व इनका एक व्यंग्य संग्रह "सर क्यों दाँत फाड़ रहा है?"
- विजया गुप्ता
- समीक्षा
पुस्तक - "दूब का बन्दा"
लेखिका- "डॉ पुष्पलता "
डाक्टर पुष्प लता अधिवक्ता बहुमुखी प्रतिभा की धनी एक सुपरिचित साहित्यकार हैं। उनका लेखन अनेक विधाओं में है।तीन खंड काव्य सहित उनकी लगभग बीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
- प्रेमलता
- समीक्षा
पुस्तक -"पानी की देह"
लेखिका- "डॉ पुष्पलता अधिवक्ता मुजफ्फरनगर "
प्रख्यात एवं वरिष्ठ लेखिका "डॉ पुष्पलता" का काव्य 'पानी की देह' मुझे pdf के द्वारा मिली, डॉ पुष्पलता एक उच्चकोटि की लेखिका है। आपकी अनेक पुस्तकें मन का चांद, अरे बाबुल काहे को मारे, खंडकाव्य एक और अहल्या, एक और वैदेही, एक और उर्मिला आदि जिनके लिए अनेक पुरस्कार पा चुकी हैं।
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डॉ. पुष्पलता
- समीक्षा
अनेक बार "दुक्खम-सुक्खम" पढ़ने की इच्छा हुई क्योंकि जिस कृति को व्यास पुरस्कार मिला वह निश्चित ही अद्भुत होगी इसकी उम्मीद थी। गूगल पर सर्च की नहीं मिली तो ममता कालिया दी से ही पूछा। पता चला प्रतिलिपि डॉट कॉम पर है ।पढ़ना शुरू किया तो लगा ये तो मेरी कहानी शुरू हो गई है।
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डॉ. पुष्पलता
- समीक्षा
प्रखर अनुभूतियाँ लिए गर्मजोशी, उतेजना, गहरी भावुकता से अपनी बात कहता है नवगीत। इसमें सहज मार्मिक संवेदना होती है। नवगीत प्रकृति और आधुनिकता से प्रेरणा प्राप्त करता है। कौंधती स्मृतियों के जरिये बिम्ब गहरे उतर जाते हैं मन में।
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डॉ. पुष्पलता
- समीक्षा
प्रेम चंद ने सही कहा था "कहानी वह ध्रुपद की तान है जिसमें गायन महफ़िल शुरू होते ही अपनी प्रतिभा दिखा देता है।" मुझे तेजेन्द्र शर्मा की कहानियाँ पढ़ने का अवसर मिला।
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डॉ. पुष्पलता
- समीक्षा
"भोर विभोर" अनिता सक्सेना जी का अनुभवों, सुखों दुखों की भावभूमि पर रचा रचना संसार है। जीवन को भोर के रूप में आत्मसात करने वाली रचनाकार की रचनाएँ वास्तव में भाव विभोर करती हैं, उनकी रचनाओं में ऊर्जा, उमंग, मानवीयता है।
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डॉ. पुष्पलता
- समीक्षा
डॉ. सुधा ओम ढींगरा का उपन्यास 'नक़्क़ाशीदार केबिनेट' पढ़ा। स्त्री अस्मिता पर जैसे सम्वेदनाओं की नक़्क़ाशी जड़ दी है। पुस्तक हाथ में लेने के बाद पाठक को पकड़ लेती है। बिना पूरी पढ़े वह उसे रखता नहीं है।
- नीरज कुमार मिश्र
- समीक्षा
हिंदी की प्रगतिशील कविता भारतीय सामाजिक अंतर्विरोध से पैदा होकर निरंतर गतिशील यथार्थ और परिवर्तित राजनीतिक स्थितियों के घात प्रतिघातों से उत्पन्न हुई है। मुक्तिबोध ने इन घात-प्रतिघातों को बहुत नज़दीक से महसूस किया था। उनकी कविताओं में इसकी गूंज़ हमें बराबर सुनाई देती है।
- डॉ. पुष्पलता मुजफ्फरनगर
- समीक्षा
कई महीने से रखी आदरणीय वेद प्रकाश "वटुक "की पुस्तकें पढ़ना चाह रही थी। मगर व्यस्त रही। आज उनकी एक कृति "शहीद न होने का दुख" पढ़ी। वेद प्रकाश 'वटुक' जी के पास कल्पनाओं का बहुत बड़ा आकाश है।