- संजय जोशी 'सजग'
- व्यंग्य
जिस प्रकार चायना के मॉल का कोई भरोसा नहीं रहता है फिर भी इसका उपयोग करना हमारी जिन्दादिली है, उसी तरह आजकल मूड़ का कोई भरोसा नही कब खराब हो जाये यह एक गंभीर समस्या बन गई है
- गोपाल सिंह राघव
- व्यंग्य
मैं तो समय का एक पीस हूं
मृत शैय्या पर पड़ा सन् दो हजार बीस हूं।
जब मेरा आगमन हुआ, आप सभी ने हैप्पी न्यू ईयर कहा।
अब जरा पता करके बताओ, कौन-कौन हैप्पी रहा?
- विजया गुप्ता
- व्यंग्य
वे स्वयं भू हैं,
वे सर्वज्ञ हैं, ज्ञानी हैं,
वे स्वघोषित मठाधीश हैं,
वे ही मुवक्किल, मुंसिफ और न्यायाधीश हैं।
- संतराम पाण्डेय
- व्यंग्य
रेखाएं तो बहुत हैं। इन्हीं रेखाओं के जाल के जंजाल में मनुष्य फंसा पड़ा है। एक देश से दूसरे देश तक। एक-एक इंच जमीन पर भी रेखाएं खिंची पड़ी हैं। बिना रेखा के किसी की औकात ही नहीं नपती। रेखा हो तो औकात तय हो जाती है। सरकार से लेकर उद्योगपति तक।