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गीता पंडित
- कथा कहानी
ऐसे नहीं
“अनिल, सुनो ना”
“हाँ, कहो”
“हमें कम से कम अब तो मॉम डैड से मिलने जाना चाहिये | पाँच वर्ष हमारे विवाह को हो गए?|
शायद, अब वे मान जाएँ और हमारे प्रेम को समझ सकें |”
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रेखा भाटिया
- कविता / ग़ज़ल
समर्पण
कभी शाम की तन्हाइयों में
कभी अकेली शामों में
दिल खो जाता है यादों के डेरे में
मैं अपने बिखरे बाल समेटती हूँ
खो जाती हूँ उस मंजर में
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अनुजीत ‘इकबाल’
- कविता / ग़ज़ल
पथभ्रष्ट
मध्य मार्ग के थकित सूत्र और
जन्म मरण की तिब्बती पुस्तकें लेकर चलना श्रेयकर था
लेकिन कोई था जो इन सबसे व्यापक था
जिसे किसी साक्ष्य या प्रमाण की आवश्यकता नहीं थी
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डॉ रामशंकर चंचल
- कथा कहानी
काली
शांत जंगल, ऊची, ऊंची पहाड़ियों और उसी पर संकरी पगडंडी का रास्ता जो देवला की झोपड़ी को जाता है। देवला के साथ उसकी पत्नी और दो बच्चे काली और थावरिया भी रहते हैं।
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डॉ. पुष्पलता
- गतिविधियां
प्रोफेसर बटुक को कबीर सम्मान से सम्मानित किया गया
प्रो. बटुक को उनकी अनन्य सेवाओं के लिए कबीर सम्मान 2022 से वेब पत्रिका आखर-आखर की संपादिका डॉक्टर पुष्पलता अधिवक्ता मुजफ्फरनगर द्वारा सम्मानित किया गया।
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डॉ कृष्ण कुमार 'बेदिल'
- समीक्षा
दुष्यत की परंपरा के कवि डॉ रामगोपाल भारतीय
जैसा कि नाम से ज़ाहिर है "तीरगी से लड़ता रहा" तीरगी यानी अंधेरा हमारी राह में आने वाली रुकावटों का प्रतीक है और डॉ राम गोपाल भारतीय की ग़ज़लें उस चिराग़ का प्रतीक हैं,
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आचार्य मूसा खान अशान्त
- कविता / ग़ज़ल
चिराग़ कैसे हवा का शिकार करते हैं
जो बेक़सों पे सितम बार-बार करते हैं,
वक़ारे इंस को वो दाग़दार करते हैं।।
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डा. स्नेहलता पाठक
- समीक्षा
दुम टूटने का दुख
डा. पुष्पलता अधिवक्ता लेखकीय क्षेत्र में ऐसा नाम है जो अपनी साफगोई के लिए पहचाना जाता है“। दुम टूटने का दुख“ व्यंग्य संग्रह इसी साफगोई को प्रतिबिंबित करता दर्पण है।
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कीर्ति "रत्न"
- कथा कहानी
प्रैक्टिस कैसे करोगी
"मैडम, मुझे भी एनुअल डे के कल्चरल प्रोग्राम में पार्टिसिपेट करना है l प्लीज़, मुझे भी ग्रुप डाँस में ले लीजिये l" 12 वर्ष की सातवी में पढ़ने वाली कुषा ने झिझकते हुए अपनी म्युज़िक टीचर से कहाl
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कान्ति शुक्ला
- कविता / ग़ज़ल
बहे काव्य की गंगा-यमुना
ले लूँ फिर संकेत तरंगित सागर के उच्छवास से ।
पाऊँ फिर संदेश झुरमुटों में भटके वातास से ।
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वत्सला पांडेय
- कविता / ग़ज़ल
सैकड़ों अड़चन
स्वयं को
खोजने निकला है
फिर से बावरा ये मन
हमें मालूम है इस राह में हैं सैकड़ों अड़चन
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प्रेमलता
- कविता / ग़ज़ल
अतीत के दंश
अतीत के दंश
वृक्ष बन खड़े हैं ।
शाखाओं की ,
विशालकायता
यमदूत सी लगती है ।।
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कुमार बिंदु
- कविता / ग़ज़ल
भोर में सूर्य
अभी- अभी रात ने
अपनी काली जुल्फों को समेटा है
अभी- अभी रात ने
अपनी बांहों के बंधन ढीले किए हैं
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योगेन्द्र दत्त शर्मा
- कविता / ग़ज़ल
रायशुमारी क्या करते
हर महफ़िल में, हर मौक़े पर थी दुश्वारी, क्या करते,
भक्तजनों के बीच में रहकर रायशुमारी क्या करते !
संत खड़े जयकार कर रहे, ज्वाला देवी भड़क रहीं,
ऐसे में हम ध्वजा-नारियल-पान-सुपारी क्या करते !
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अमित धर्मसिंह
- कविता / ग़ज़ल
मतिभ्रम
पृथ्वी अरबों साल से घूमते घूमते भी
कभी नहीं निकली हेबिटेबल जोन से बाहर,
सूर्य ने आज तक नही छोड़ी अपनी जगह
चंद्रमा आज भी काट रहा पृथ्वी के चक्कर
उसके अगाध प्रेम में।
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कीर्ति "रत्न"
- कथा कहानी
अभिजात्य
"अरे, अब तो ये लोग भी बड़ी, हाई-फ़ाई सोसाइटिज़ में फ़्लैट लेने लगे हैं l" श्रीमती प ने कहा l
"कौन लोग ?" मैंने पूछा l
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किशन स्वरूप
- कविता / ग़ज़ल
सफ़र में ज़िन्दगी के खो गया तो
हक़ीक़त हो गयी उसको पता तो,
हुआ वो बेसबब हमसे ख़फ़ा तो।
अँधेरे में कोई ग़फ़लत न करना,
वहाँ भी देखता होगा ख़ुदा तो।
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रूपेंद्र राज तिवारी
- कविता / ग़ज़ल
उम्मीदों की पड़ी फुहारें
आशाओं के बादल सिरजे
नभ के आँगन में
उम्मीदों की पड़ीं फुहारें
पतझड़ जीवन में।