- सुधाकर अदीब
- उपन्यास
वैसे तो यह संसार ही एक बहुत बड़ी चूहेदानी है। इसमें मनुष्य रूपी चूहा यदि एक बार फँस जाए तो परमपिता परमात्मा की इच्छा के बिना इससे बाहर नहीं निकल सकता। किंतु वास्तविक चूहेदानी में जब कोई चूहा फँसता है तो वह असहाय अवस्था में भी दाँत पीसता हुआ यह सोचता है कि बुरा हो इस पापी पेट की अग्नि का...! इस पातकी मनुष्य ने आज छल से मुझे फँसा दिया।
- डॉ. पुष्पलता
- उपन्यास
"पृथ्वी पर नारायण" डॉ. पुष्पलता का व्यंग्यात्मक उपन्यास है. अपने संप्रेषण को अधिक मारक बनाने के लिए साहित्यकार अभिधा की अपेक्षा लक्षणा और व्यंजना का अधिक प्रयोग करता है. इस पुस्तक की रचनाकार ने पृथ्वी की (मुख्या रूप से भारतवर्ष की) अनुशासन हीनता, अराजकता, स्वर्त्पर्ता, क्रूरता, भ्रष्टाचार आदि अव्यवस्थाओं को उजागर करने के लिए व्यंग्य, वक्रोक्ति, विदग्धता और व्यंजना का सहारा लिया है